ग्वालियर..मनुष्य को कामए क्रोधए लोभए मोहए ईर्षाए द्वेष से बचना चाहिए। इनमें से अगर कोई भी मनुष्य पर हावी हो जाए तो मनुष्य भगवान को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता। अगर मनुष्य को भगवान की शरण में जाना है तो इन बुराइयों को अपने मन से निकालना होगा। बिना स्वार्थ के की गई सेवा व भक्ति का फल शीघ्र ही मिलता है। इसलिए मनुष्य को बिना स्वार्थ के भक्ति करनी चाहिए।यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने आज सोमवार को हरिशंकर पुरम के धर्मचर्चा में व्यक्त किए! इस मौके पर मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे!
मुनिश्री ने कहा कि भगवान भी अपने भक्त का हर मुश्किल समय में साथ देते हैं और उसे मुश्किल से निकालते हैं। अगर कोई मुसीबत आती है तो उससे घबराएं नहींए बल्कि डटकर उसका सामना करें और भगवान पर विश्वास बनाए रखें। मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति को हमेशा सच व धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए।
उन्होंने आगे कहाकि असल में सच बोलना व सच का साथ देना ही सबसे बड़ा धर्म है। जब बच्चा पैदा होता हैए तब वह अपना पिछला भाग्य साथ लाता है। जैसा उसने पूर्व भाव में कर्म किया हैए उसे वैसा ही फल मिलता है। जीव जैसा कर्म कर रहा है वैसा ही उसे आने वाले समय में फल भोगना पड़ेगा। जब समय खराब होता है तो अपने भी मुंह फेर लेते हैं। इसीलिए सम्यक भाव से जीवन यापन करना चाहिए।
संसार में वाणी का सब खेल
मुनिश्री विहर्ष सागर जी महाराज ने कहा कि संसार में वाणी का सब खेल है। हमारा व्यवहार कई बार हमारे ज्ञान से अधिक अच्छा साबित होता है क्योंकि जीवन में जब विषम परिस्थितियाँ आती हैं तब ज्ञान हार सकता है किन्तु व्यवहार से हमेशा जीत होने की संभावना रहती है।शब्दों के द्वारा हमारा जीवन बहुत जल्दी प्रभावित होता है। एक शब्द सुनकर आपके अन्दर खुशियां छा जाती है। एक शब्द सुनके आपके अन्दर राग की रेखाएं छा जाती है। एक शब्द सुनकर क्रोध की लहर छा जाती है।
मनुष्य को कामए क्रोधए लोभए मोहए ईर्षाए द्वेष से बचना चाहिए